सविनय अवज्ञा आंदोलन: कब और क्यों शुरू हुआ?

by Wholesomestory Johnson 43 views

नमस्ते! आपका सवाल है, "सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू किया गया था?" यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव था। इस लेख में, हम आपको सविनय अवज्ञा आंदोलन के बारे में विस्तार से बताएंगे, यह कब शुरू हुआ, इसके पीछे के कारण क्या थे, और इसका भारतीय इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा।

सही उत्तर

सविनय अवज्ञा आंदोलन 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा नमक सत्याग्रह के साथ शुरू किया गया था।

विस्तृत व्याख्या

सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे दांडी मार्च या नमक मार्च के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक युगांतरकारी घटना थी। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण नमक कानून के विरोध में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार की नीतियों का अहिंसक तरीके से विरोध करना और भारत के लिए पूर्ण स्वराज की मांग को मजबूत करना था।

आंदोलन की पृष्ठभूमि और कारण

सविनय अवज्ञा आंदोलन के शुरू होने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे:

  • नमक कानून: ब्रिटिश सरकार ने नमक के उत्पादन और बिक्री पर एकाधिकार स्थापित कर रखा था और भारतीयों पर नमक कर लगाया था। यह कानून न केवल आर्थिक रूप से दमनकारी था, बल्कि भारतीयों के लिए अपमानजनक भी था, क्योंकि नमक एक बुनियादी आवश्यकता है। महात्मा गांधी ने इस कानून को अन्याय का प्रतीक माना।
  • साइमन कमीशन का विरोध: 1927 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने के लिए साइमन कमीशन का गठन किया। इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, जिसके कारण पूरे भारत में इसका व्यापक विरोध हुआ। कांग्रेस ने कमीशन का बहिष्कार किया और 'साइमन वापस जाओ' के नारे लगाए।
  • पूर्ण स्वराज की मांग: 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 'पूर्ण स्वराज' का प्रस्ताव पारित किया गया। इसने ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को और बुलंद किया।
  • आर्थिक मंदी और बेरोजगारी: उस समय भारत गंभीर आर्थिक मंदी और बेरोजगारी का सामना कर रहा था। ब्रिटिश सरकार की नीतियां भारतीयों की आर्थिक दुर्दशा को और बढ़ा रही थीं।
  • गांधीजी की 11 सूत्रीय मांगें: आंदोलन शुरू करने से पहले, गांधीजी ने वायसराय लॉर्ड इरविन के समक्ष 11 सूत्रीय मांगें रखीं, जिनमें नमक कर समाप्त करना, लगान कम करना, और राजनीतिक कैदियों को रिहा करना शामिल था। इन मांगों को अनसुना कर दिया गया, जिसके बाद गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का फैसला किया।

दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह)

सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को गुजरात के साबरमती आश्रम से हुई। महात्मा गांधी ने अपने 78 सत्याग्रहियों के साथ अहमदाबाद से दांडी (गुजरात के तट पर स्थित एक गाँव) तक 240 मील की पैदल यात्रा शुरू की। यह यात्रा 5 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंची, जहाँ गांधीजी ने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा।

  • प्रतीकात्मकता: नमक बनाकर गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के एकाधिकार को चुनौती दी और यह संदेश दिया कि कोई भी कानून जो अन्यायपूर्ण हो, उसका पालन करने की आवश्यकता नहीं है। यह एक अहिंसक क्रांति की शुरुआत थी।
  • जनभागीदारी: दांडी मार्च और नमक कानून तोड़ने के इस कार्य ने पूरे देश में लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। महिलाओं, किसानों, छात्रों, मजदूरों - सभी वर्गों के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
  • देशव्यापी फैलाव: नमक सत्याग्रह के बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने अपने-अपने तरीके से नमक कानून तोड़ा और अन्य सविनय अवज्ञा के कार्य किए।

आंदोलन का विस्तार और स्वरूप

सविनय अवज्ञा आंदोलन केवल नमक कानून तोड़ने तक सीमित नहीं था। इसमें निम्नलिखित प्रकार की गतिविधियाँ शामिल थीं:

  • अहिंसक प्रदर्शन: लोगों ने सरकारी आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया।
  • सरकारी पदों का त्याग: कई लोगों ने सरकारी नौकरियों और उपाधियों को त्याग दिया।
  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार: लोगों ने विदेशी कपड़ों और अन्य वस्तुओं का बहिष्कार किया और स्वदेशी को अपनाया।
  • शराब की दुकानों पर धरना: महिलाओं ने शराब की दुकानों के बाहर धरना देकर शराबबंदी का समर्थन किया।
  • कर अदायगी का विरोध: कुछ क्षेत्रों में लोगों ने ब्रिटिश सरकार को कर देने से इनकार कर दिया।

गांधी-इरविन समझौता

आंदोलन की व्यापकता और अहिंसक प्रकृति के कारण ब्रिटिश सरकार पर काफी दबाव पड़ा। इसके परिणामस्वरूप, 5 मार्च 1931 को गांधीजी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता कहा जाता है। इस समझौते के तहत:

  • सरकार ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त करने और कांग्रेस की मांगों पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की।
  • सरकार ने सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का वादा किया (कुछ विशेष मामलों को छोड़कर)।
  • गांधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति व्यक्त की।

हालांकि, यह समझौता पूरी तरह से सफल नहीं रहा और गांधीजी ने बाद में आंदोलन को फिर से शुरू किया जब उन्हें लगा कि सरकार अपने वादों को पूरा नहीं कर रही है।

आंदोलन का प्रभाव और परिणाम

सविनय अवज्ञा आंदोलन का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा:

  • जनता का सशक्तिकरण: इसने आम जनता को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रेरित किया और उनमें आत्मविश्वास जगाया।
  • ब्रिटिश सरकार पर दबाव: इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को यह अहसास कराया कि वह भारतीयों को लंबे समय तक दबा नहीं सकती।
  • राष्ट्रीय चेतना का विकास: इसने देश भर में राष्ट्रीय चेतना को मजबूत किया और एकता की भावना को बढ़ावा दिया।
  • अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: इस आंदोलन ने दुनिया भर का ध्यान भारत की स्वतंत्रता की मांग की ओर आकर्षित किया।

मुख्य बिंदु (Key Takeaways)

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन 12 मार्च 1930 को नमक सत्याग्रह के साथ शुरू हुआ।
  • इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था।
  • आंदोलन का मुख्य उद्देश्य अन्यायपूर्ण नमक कानून का विरोध करना और पूर्ण स्वराज की मांग करना था।
  • आंदोलन की शुरुआत दांडी मार्च से हुई, जिसमें गांधीजी ने समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानून तोड़ा।
  • यह आंदोलन अहिंसक था और इसमें जनता की व्यापक भागीदारी देखी गई।
  • गांधी-इरविन समझौता (1931) इस आंदोलन का एक महत्वपूर्ण परिणाम था।
  • इस आंदोलन ने भारतीय जनता को सशक्त बनाया और राष्ट्रीय चेतना को मजबूत किया।

यह आंदोलन स्वतंत्रता की लड़ाई में एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने भारत की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया।