रस के कितने अंग हैं? जानें विस्तार से!

by Wholesomestory Johnson 39 views

नमस्ते! आज हम हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण विषय, रस के बारे में बात करेंगे। आपका प्रश्न है कि रस के कितने अंग होते हैं, और हम आपको इसका विस्तृत और सटीक उत्तर देंगे। इस लेख में, हम रस के अंगों को समझेंगे ताकि आपको यह विषय अच्छी तरह से समझ आ जाए।

सही उत्तर

रस के चार अंग होते हैं: स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।

विस्तृत स्पष्टीकरण

रस भारतीय काव्यशास्त्र में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह कविता, कहानी, नाटक, या किसी भी कलाकृति को पढ़ने, सुनने या देखने से उत्पन्न होने वाली आनंदमय अनुभूति है। रस का अनुभव पाठक या दर्शक के हृदय में होता है और यह स्थायी भावों के माध्यम से व्यक्त होता है। रस के चार प्रमुख अंग होते हैं, जो मिलकर रस की पूर्णता को सुनिश्चित करते हैं। इन अंगों को समझना आवश्यक है ताकि हम किसी भी साहित्यिक कृति के रस का सही अनुभव कर सकें।

रस के अंग

  1. स्थायी भाव

    स्थायी भाव रस का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह वह मूल भाव है जो मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहता है। ये भाव सुप्त अवस्था में रहते हैं, लेकिन सही अवसर मिलने पर जागृत हो जाते हैं और रस का अनुभव कराते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ मानी गई है, जिन्हें नवरस भी कहा जाता है। ये नौ भाव निम्नलिखित हैं:

    • रति (प्रेम): यह श्रृंगार रस का स्थायी भाव है। प्रेम, स्नेह और अनुराग की भावना रति कहलाती है। उदाहरण के लिए, नायक और नायिका के बीच का प्रेम।
    • हास (हँसी): यह हास्य रस का स्थायी भाव है। हँसी, विनोद और मनोरंजन की भावना हास कहलाती है। उदाहरण के लिए, किसी मजाकिया दृश्य को देखकर हँसी आना।
    • शोक (दुख): यह करुण रस का स्थायी भाव है। दुख, पीड़ा और वेदना की भावना शोक कहलाती है। उदाहरण के लिए, किसी प्रियजन की मृत्यु पर दुख होना।
    • क्रोध (गुस्सा): यह रौद्र रस का स्थायी भाव है। गुस्सा, आक्रोश और क्रोध की भावना क्रोध कहलाती है। उदाहरण के लिए, अन्याय देखकर गुस्सा आना।
    • उत्साह (जोश): यह वीर रस का स्थायी भाव है। जोश, साहस और वीरता की भावना उत्साह कहलाती है। उदाहरण के लिए, युद्ध में वीरता दिखाना।
    • भय (डर): यह भयानक रस का स्थायी भाव है। डर, आशंका और भय की भावना भय कहलाती है। उदाहरण के लिए, अंधेरी रात में डर लगना।
    • जुगुप्सा (घृणा): यह वीभत्स रस का स्थायी भाव है। घृणा, नफरत और disgust की भावना जुगुप्सा कहलाती है। उदाहरण के लिए, किसी गंदी चीज को देखकर घृणा होना।
    • विस्मय (आश्चर्य): यह अद्भुत रस का स्थायी भाव है। आश्चर्य, अचरज और विस्मय की भावना विस्मय कहलाती है। उदाहरण के लिए, किसी अद्भुत दृश्य को देखकर आश्चर्यचकित होना।
    • निर्वेद (वैराग्य): यह शांत रस का स्थायी भाव है। वैराग्य, शांति और उदासीनता की भावना निर्वेद कहलाती है। उदाहरण के लिए, सांसारिक मोह-माया से दूर होना।
  2. विभाव

    विभाव वे कारण, वस्तुएँ, या परिस्थितियाँ हैं जो स्थायी भावों को जगाते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं: आलंबन विभाव और उद्दीपन विभाव।

    • आलंबन विभाव: आलंबन विभाव वह व्यक्ति या वस्तु है जिसके कारण स्थायी भाव उत्पन्न होता है। यह भावों का आधार होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी कविता में नायक और नायिका के प्रेम का वर्णन है, तो नायक और नायिका आलंबन विभाव होंगे क्योंकि उनके कारण रति (प्रेम) का स्थायी भाव जागृत होगा।
    • उद्दीपन विभाव: उद्दीपन विभाव वे परिस्थितियाँ या वातावरण हैं जो स्थायी भाव को और अधिक तीव्र करते हैं। ये भावों को उत्तेजित करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि नायक और नायिका एक सुंदर बाग में मिलते हैं, तो बाग की सुंदरता, फूलों की सुगंध, और पक्षियों का कलरव उद्दीपन विभाव होंगे, जो उनके प्रेम को और बढ़ाएंगे।
  3. अनुभाव

    अनुभाव वे शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रियाएँ हैं जो स्थायी भावों के जागृत होने पर उत्पन्न होती हैं। ये भावों के बाह्य लक्षण होते हैं। अनुभाव चार प्रकार के होते हैं: कायिक, वाचिक, मानसिक, और सात्विक।

    • कायिक अनुभाव: ये शारीरिक क्रियाएँ हैं जो भावों को व्यक्त करती हैं। उदाहरण के लिए, प्रेम में मुस्कुराना, क्रोध में आँखें लाल होना, भय में काँपना, आदि कायिक अनुभाव हैं।
    • वाचिक अनुभाव: ये वचन या वाणी के माध्यम से व्यक्त किए जाने वाले भाव हैं। उदाहरण के लिए, प्रेम में मीठे वचन बोलना, क्रोध में कठोर शब्द कहना, भय में चिल्लाना, आदि वाचिक अनुभाव हैं।
    • मानसिक अनुभाव: ये मानसिक प्रतिक्रियाएँ हैं जो भावों को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, प्रेम में खुशी महसूस करना, क्रोध में चिड़चिड़ापन महसूस करना, भय में घबराहट महसूस करना, आदि मानसिक अनुभाव हैं।
    • सात्विक अनुभाव: ये स्वाभाविक प्रतिक्रियाएँ हैं जो बिना किसी प्रयास के उत्पन्न होती हैं। इनकी संख्या आठ मानी गई है: स्तंभ (स्तब्ध रह जाना), स्वेद (पसीना आना), रोमांच (रोंगटे खड़े होना), स्वरभंग (आवाज में परिवर्तन), कंप (काँपना), विवर्णता (चेहरे का रंग उड़ जाना), अश्रु (आँसू आना), और प्रलय (बेहोश हो जाना)।
  4. संचारी भाव

    संचारी भाव वे भाव हैं जो स्थायी भावों के साथ-साथ उत्पन्न होते हैं और फिर लुप्त हो जाते हैं। ये भाव पानी में बुलबुलों की तरह होते हैं, जो उठते हैं और फिर विलीन हो जाते हैं। संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है। कुछ प्रमुख संचारी भाव निम्नलिखित हैं:

    • हर्ष (खुशी): आनंद और प्रसन्नता की भावना।
    • विषाद (दुख): उदासी और निराशा की भावना।
    • शंका (संदेह): संदेह और अविश्वास की भावना।
    • क्रोध (गुस्सा): आक्रोश और उत्तेजना की भावना।
    • ग्लानि (अपराधबोध): अपराध या गलती करने पर होने वाली भावना।
    • चिंता (परेशानी): तनाव और व्याकुलता की भावना।
    • स्मृति (याद): पुरानी बातों को याद करने की भावना।
    • उत्सुकता (जिज्ञासा): जानने की इच्छा की भावना।
    • दैन्य (हीनता): कमजोरी और लाचारी की भावना।
    • जड़ता (स्तब्धता): निष्क्रियता और सुस्ती की भावना।

उदाहरण के साथ समझ

आइए, एक उदाहरण के माध्यम से रस के अंगों को समझते हैं। मान लीजिए, आप एक नाटक देख रहे हैं जिसमें एक वीर योद्धा युद्ध में लड़ रहा है।

  • स्थायी भाव: योद्धा के मन में उत्साह (वीर रस) का स्थायी भाव है।
  • विभाव:
    • आलंबन विभाव: योद्धा स्वयं और उसके शत्रु।
    • उद्दीपन विभाव: युद्ध का मैदान, हथियारों की आवाज, और युद्ध के नारे।
  • अनुभाव: योद्धा का पराक्रम दिखाना, शत्रुओं को ललकारना, और युद्ध में वीरतापूर्ण कार्य करना।
  • संचारी भाव: योद्धा के मन में हर्ष, गर्व, और जोश की भावनाएँ उत्पन्न होना और फिर विलीन हो जाना।

इस प्रकार, स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, और संचारी भाव मिलकर वीर रस की अनुभूति कराते हैं।

रस का महत्व

रस का काव्यशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है। यह किसी भी रचना को सरस और आनंददायक बनाता है। रस के ज्ञान से हम किसी भी कृति के भावों को गहराई से समझ सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं। रस न केवल साहित्य में बल्कि जीवन में भी महत्वपूर्ण है। यह हमें भावनाओं को समझने और उनका सम्मान करने में मदद करता है।

निष्कर्ष

इस लेख में, हमने रस के अंगों के बारे में विस्तार से जाना। रस के चार अंग - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, और संचारी भाव - मिलकर रस की पूर्णता को सुनिश्चित करते हैं। इन अंगों को समझकर हम किसी भी साहित्यिक कृति का सही आनंद ले सकते हैं। रस का ज्ञान हमें भावनाओं को समझने और उनका सम्मान करने में मदद करता है।

मुख्य बातें

  • रस के चार अंग होते हैं: स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
  • स्थायी भाव मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं।
  • विभाव वे कारण हैं जो स्थायी भावों को जगाते हैं।
  • अनुभाव वे शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रियाएँ हैं जो भावों के जागृत होने पर उत्पन्न होती हैं।
  • संचारी भाव वे भाव हैं जो स्थायी भावों के साथ-साथ उत्पन्न होते हैं और फिर लुप्त हो जाते हैं।

हमें उम्मीद है कि इस लेख से आपको रस के अंगों के बारे में अच्छी जानकारी मिली होगी। यदि आपके कोई और प्रश्न हैं, तो कृपया पूछने में संकोच न करें! धन्यवाद!